भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के आयोजन में लाखों व्यक्तियों का सहयोग होता है। जिसमें हैं-
1 शिक्षा मंत्रालय
शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार (सम्बन्धित राज्य सरकारों) के विशेष सहयोग एवं स्वीकृति से यह परीक्षा प्रतिवर्ष पूरे देशभर में आयोजित होती है।
2 प्रशासनिक अधिकारी
इस परीक्षा में शिक्षा विभाग के प्रशासनिक अधिकारियों/कर्मचारियों का विशेष योगदान होता है। ये अधिकारीगण प्रत्येक विद्यालयों को परीक्षा आयोजन हेतु स्वीकृत पत्र प्रेषित करते हैं।
3 विद्यायलीन प्रशासन
शासनिक एवं निजि विद्यालयों के संचालकों की विशेष सहयोग एवं स्वीकृति से यह परीक्षा बड़ी सुगमता से प्रतिवर्ष आयोजित होती है। विद्यालय प्रशासन हमारी सांस्कृतिक विरासत को छात्र छात्राओं के जीवन में समाहित करने के लिए आधार प्रदान करते है।
4 शिक्षक-शिक्षिकाएँ (अध्यापक)
इस परीक्षा के आयोजन में अध्यापकों की विशेष भूमिका होती है। इस परीक्षा के संचालन में प्रत्येक वर्ष लाखों अध्यापकों का श्रम एवं सहयोग होता है। परम पूज्य गुरुदेव ने कहा है- अध्यापक हैं युग निर्माता, छात्र राष्ट्र के भाज्य विधाता। शिक्षक छात्रों के व्यक्त्वि निर्माता होते हैं। छात्र छात्राओं को भारतीय संस्कृति का बोध कराने एवं उन्हें जीवन में धारण करने के लिए प्रेरित करने में अध्यापकों का विशेष योगदान होता है।
5 स्वयंसेवी/संयोजक कार्यकर्ता
यह परीक्षा प्रतिवर्ष गायत्री परिवार के स्वयंसेवी समन्वयक/कार्यकर्ताओं के सहयोग एवं परिश्रम से आयोजित होती है। परीक्षा तिथि निर्धारित होने के बाद (मार्च से) विद्यालयों, कार्यकर्ताओं एवं समाजसेवियों से सम्पर्क कर परीक्षा में अधिकाधिक छात्र-छात्राओं की भागीदारी सुनिश्चित कराने का दायित्व निभाते है। विद्यालयों में जन सम्पर्क, छात्र पंजीयन, परीक्षा आयोजन, परीक्षा परिणाम, प्रमाण पत्र एवं पुरस्कार वितरण जैसे विविध कार्यों को सम्पन्न करने में एक संदेशवाहक एवं प्रतिनिधि की भूमिका निभाते है।
6 पालकों/अभिभावकों
जो अभिभावक अपने बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ उनके जीवन में विद्या/संस्कारों का भी समावेश कराना चाहते हैं, वे अभिभावक अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा में प्रतिभाग करने के लिए प्रोत्साहित करते है। ऐसे अभिभावकों की इस परीक्षा में विशेष भूमिका होती है।
7 छात्र-छात्राएँ
छात्र-छात्राएँ भावी राष्ट्र के कर्णधार एवं निर्माता की भूमिका में होते है। परम पूज्य गुरुदेव ने छात्रों को राष्ट्र के भाज्यविधाता कहा है। जैसा छात्र होगा, वैसा नागिरक बनेगा, जैसा नागरिक बनेगा, वैसा राष्ट्र का बनता है। संस्कृतिनिष्ठ छात्र/नागरिक राष्ट्र को सही दिशा दे सकता है, सही दिशा में ला सकता है। संस्कृतिनिष्ठ छात्र-छात्राएँ इस परीक्षा की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। आज 42 लाख से अधिक छात्र छात्राएँ इस परीक्षा में प्रतिभाग करते है एवं अन्य छात्र-छात्राओं को प्रेरित भी करते है।